श्रीराम आशरा अन्नक्षेत्र ट्रस्ट
राम आशरा राम का धरणीधर का धाम |
दे ने को टुकडा भला ले ने को हरि नाम ||
श्रीराम आसरा अन्नक्षेत्र :-
आज (ई 2006) से एक सौ (100) साल पहेले परम पुज्य दयालु सन्त श्री श्री 1008 श्रीकल्याणदासजी महाराज ने प्यासे को पानी और भुखे को रोटी के लिऐ जिस जगह पर अन्नक्षेत्र की स्थापना की थी, उस परम पावन स्थान का नाम है, श्रीराम आशरा | सौ साल पहले ऐसी परिस्थिति थी कि उस समय लोग बैलगाडी, उंट, घोडा ईत्यादि वाहनों से अथवा पैदल हि अपनी यात्रा करते थे | बस – मोठरगाडी ईत्यादि कोई यान्त्रिक साधन थे नही | गांव भी एक दुसरे से तीन या चार कोश की दुरी पर थे | रास्ते में पीने के लिये पानी की भी कोई व्यवस्था नही थी | ऐसी परिस्थिति में बालोतरा (राजस्थान) से श्रीकल्याणदासजी महाराज श्रीधरणीधरजी भगवान--ढीमा (गुजरात) की यात्रा करने के लिये पैदल आ रहे थे | जब सन्तश्रीने गुजरात प्रान्तमें प्रवेश किया तब उन्होंने रास्ते में एक जगह पर थोडा विश्राम करने की ईच्छा की | वह ऐसी निर्जन जगह कि वहां चारों और घना जंगल था | यहां से राजस्थान –गुजरात का बडा रास्त गुजर रहा था | खास कर यात्रिक लोग रातदिन ईसी रास्ते से आवन जावन करते थे | ईस रास्ते पर तीन कोश की दुरी पर कोई गांव नही था | महाराज कल्याणदासजीने कुछ विश्राम करने के लिये वहां सरोवर के किनारे पर आसन लगाया । ऐसे समय पर कुछ यात्रिक लोग वहां पर आये और वे पानी के बिना प्यासे मर रहे है, ऐसा कहा | तब महाराज श्रीकल्याणदासजीने अपने तुम्बीपात्र में से उन सबको पानी पीलाया | तब महाराजश्री ने सोचा कि ईस रास्ते पर यात्रिक लोग बहुत दु:खित होते है | यहां पर पानी और रोटी की बहुत बडी जरुरियात है | ईस जरुरियात की पूर्ति और कौन करेगा ? मैं खुद हि क्यों न करुं बस, क्या देर थी | वे खुद बैठ गये उसी जगह पर और पास के घंटीयाली गांव से पानी की मटकी भर कर लाये और साथ में मांग कर कुछ रोटी भी ले आये | अब यात्रिकों को आश्रय मिल गया और उसी समय सन्त के मुख से एक साखी निकल पडी - राम आशरा राम का धरणीधर का धाम | दे ने को टुकडा भला ले ने को हरि नाम ||